Skip to content

vartabook

Just another WordPress site

Menu
  • Sample Page
Menu

सूर्यवंशी क्षत्रियो की शाखा एवं हर्षवर्धन बैंस राजपूत का वंश‌ परिचय

Posted on January 29, 2023

गोत्र : भारद्वाज है
प्रवर : भारद्वाज, वृहस्पति और अंगिरस
वेद : यजुर्वेद
कुलदेवी : कालिका माता
इष्ट देव : शिव जी
ध्वज : आसमानी और नाग चिन्ह

प्रसिद्ध बैस व्यक्तित्व :-

शालिवाहन : शालिवाहन राजा, शालिवाहन (जिसे कभी कभी गौतमीपुत्र शताकर्णी के रूप में भी जाना जाता है) को शालिवाहन शक के शुभारम्भ का श्रेय दिया जाता है जब उसने वर्ष 78 में उजयिनी के नरेश विक्रमादित्य को युद्ध मे हराया था और इस युद्ध की स्मृति मे उसने इस युग को आरंभ किया था। एक मत है कि, शक् युग उज्जैन, मालवा के राजा विक्रमादित्य के वंश पर शकों की जीत के साथ शुरु हुआ।

हर्षवर्धन : हर्षवर्धन प्राचीन भारत में एक राजा था जिसने उत्तरी भारत में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था। वह अंतिम हिंदू सम्राट् था जिसने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया। शशांक की मृत्यु के उपरांत वह बंगाल को भी जीतने में समर्थ हुआ। हर्षवर्धन के शासनकाल का इतिहास मगध से प्राप्त दो ताम्रपत्रों, राजतरंगिणी, चीनी यात्री युवेन संग के विवरण और हर्ष एवं बाणभट्टरचित संस्कृत काव्य ग्रंथों में प्राप्त है। उसके पिता का नाम ‘प्रभाकरवर्धन’ था। राजवर्धन उसका बड़ा भाई और राज्यश्री उसकी बड़ी बहन थी।

(१) नंदीवर्धन बैस
(२) सुहेलदेव बैंस
(३) अभयचंद बैंस
(४) राणा बेनीमाधव बख्श सिंह
(५) मेजर ध्यानचंद बैंस आदि ।।

बैस राजपूतों की शाखाएँ :-
कोट बहार बैस, कठ बैस, डोडिया बैस, त्रिलोकचंदी (राव, राजा, नैथम, सैनवासी) बैस, प्रतिष्ठानपुरी बैस, रावत, कुम्भी, नरवरिया, भाले सुल्तान, चंदोसिया

बैस राजपूतों के प्राचीन राज्य और ठिकाने :-

प्रतिष्ठानपुरी, स्यालकोट ,स्थानेश्वर, मुंगीपट्टम्म, कन्नौज, बैसवाडा, कस्मांदा, बसन्तपुर, खजूरगाँव थालराई, कुर्रिसुदौली, देवगांव,मुरारमउ, गौंडा, थानगाँव, कटधर आदि।

बैस राजपूतों वर्तमान निवास :-

यूपी के अवध में स्थित बैसवाडा, मैनपुरी, एटा, बदायूं, कानपुर, इलाहबाद, बनारस, आजमगढ़, बलिया, बाँदा, हमीरपुर, प्रतापगढ़, सीतापुर रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ, हरदोई, फतेहपुर, गोरखपुर, बस्ती, मिर्जापुर, गाजीपुर, गोंडा, बहराइच, बाराबंकी, बिहार, पंजाब, पाक अधिकृत कश्मीर, पाकिस्तान में बड़ी आबादी है और मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी थोड़ी आबादी है।

परम्पराएँ
बैस राजपूत नागो को नहीं मारते हैं, नागपूजा का इनके लिए विशेष महत्व है, इनमे ज्येष्ठ भ्राता को टिकायत कहा जाता था और सम्पत्ति का बड़ा हिस्सा आजादी से पहले तक उसे ही मिलता था। मुख्य गढ़ी में टिकायत परिवार ही रहता था और शेष भाई अलग किला/मकान बनाकर रहते थे, बैस राजपूतो में आपसी भाईचारा बहुत ज्यादा होता है। बिहार के सोनपुर का पशु मेला बैस राजपूतों ने ही प्रारम्भ किया था।

बैस क्षत्रियों कि उत्पत्ति :-

बैस राजपूतों कि उतपत्ति के बारे में दो मत प्रचलित हैं : अधिकतर ऐतिहासिक विद्वान जैसे महाकवि बाणभट, गौरीशंकर औझा, श्री रघुनाथ सिंह इत्यादि इन्हें प्रभु श्री राम के अनुज भरत के वंशज अतः सूर्यवंशी क्षत्रिय मानते हैं तो कुछ अन्य इतिहासकार बैंस राजपूतों को नागवंशी क्षत्रिय मानते हैं क्योंकि बैंस क्षत्रिय नागो की पूजा करते हैं अतः उनकी हत्या भी नहीं करते किंतु इतिहास की गर्भ में देखा जाए तो नागवंशी क्षत्रियों के पीछे कई इतिहासकार मत देते हैं कि सूर्यवंशी क्षत्रिय में जन्मे श्री राम के अनुज लक्ष्मण जोकि शेषनाग के अवतार थे उन्हीं के वंशज आगे चलकर नागवंशी क्षत्रिय कहलाऐ ।

१. ठाकुर ईश्वर सिंह मढ़ाड कृत राजपूत वंशावली के प्रष्ठ संख्या 112-114 के अनुसार सूर्यवंशी राजा वासु जो बसाति जनपद के राजा थे, उनके वंशज बैस राजपूत कहलाते हैं, बसाति जनपद महाभारत काल तक बना रहा है
२. देवी सिंह मंडावा कृत राजपूत शाखाओं का इतिहास के पृष्ठ संख्या 67-74 के अनुसार वैशाली से निकास के कारण ही यह वंश वैस या बैस या वैश कहलाया, इनके अनुसार बैस सूर्यवंशी हैं, इनके किसी पूर्वज ने किसी नागवंशी राजा कि सहायता से उन्नति कि इसीलिए बैस राजपूत नाग पूजा करते हैं और इनका चिन्ह भी नाग है।
महाकवि बाणभट ने सम्राट हर्षवर्धन जो कि बैस क्षत्रिय थे उनकी बहन राज्यश्री और कन्नौज के मौखरी (मखवान, झाला) वंशी महाराजा गृहवर्मा के विवाह को सूर्य और चन्द्र वंश का मिलन बताया है, मौखरी चंद्रवंशी थे अत: बैस सूर्यवंशी सिद्ध होते हैं।
३. महान इतिहासकार गौरिशंकर ओझा जी कृत राजपूताने का इतिहास के पृष्ठ संख्या 154-162 में भी बैस राजपूतों को सूर्यवंशी सिद्ध किया गया है।
४. श्री रघुनाथ सिंह कालीपहाड़ी कृत क्षत्रिय राजवंश के प्रष्ठ संख्या 78, 79 एवं 368, 369 के अनुसार भी बैस सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं।
५. डा देवीलाल पालीवाल कि कर्नल जेम्स तोड़ कृत राजपूत जातियों का इतिहास के प्रष्ठ संख्या 182 के अनुसार बैस सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं।
६. ठाकुर बहादुर सिंह बीदासर कृत क्षत्रिय वंशावली एवं जाति भास्कर में बैस वंश को स्पष्ट सूर्यवंशी बताया गया है।
७. इनके झंडे में नाग का चिन्ह होने के कारण कई विद्वान इन्हें नागवंशी मानते हैं,लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार भी माना जाता है। अत: कुछ विद्वान बैस राजपूतो को लक्ष्मण का वंशज और नागवंशी मानते हैं,कुछ विद्वानों के अनुसार भरत के पुत्र तक्ष से तक्षक नागवंश चला जिसने तक्षिला कि स्थापना की,बाद में तक्षक नाग के वंशज वैशाली आये और उन्ही से बैस राजपूत शाखा प्रारम्भ हुई।
८. कुछ विद्वानों के अनुसार बैस राजपूतों के आदि पुरुष शालिवाहन के पुत्र का नाम सुन्दरभान या वयस कुमार था जिससे यह वंश वैस या बैस कहलाया,जिन्होंने सहारनपुर कि स्थापना की।
९. कुछ विद्वानों के अनुसार गौतम राजा धीरपुंडीर ने 12 वी सदी के अंत में राजा अभयचन्द्र को 22 परगने दहेज़ में दिए इन बाईस परगनों के कारण यह वंश बाईसा या बैस कहलाने लगा।
१०. कुछ विद्वान इन्हें गौतमी पुत्र शातकर्णी जिन्हें शालिवाहन भी कहा जाता है उनका वंशज मानते हैं, वहीं कुछ के अनुसार बैस शब्द का अर्थ है वो क्षत्रिय जिन्होंने बहुत सारी भूमि अपने अधिकार में ले ली हो। sabhar Factbook chatriya

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

  • कारीगरों को देश की अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाएगी सरकार: मोदी
  • यूपी में 16000 करोड़ से ग्रीन हाइड्रोजन कॉरिडोर स्थापित करने का प्रस्ताव
  • जस्टिस शमीम ने गोवध अधिनियम के तहत गाय का वध करते हैं वे नर्क में जाते हैं
  • केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए अपने कर्मचारियों के चुनिंदा समूह को पुरानी पेंशन योजना चुनने का एक मौका दिया है।
  • काम का वास्तविक आनंद सम्भोग

Recent Comments

  1. akpalspn09 on मुद्राकोष ने भारत की आर्थिक वृद्धि का अनुमान घटाया
  2. Sharonanila on स्वामी विवेकानंद – एक क्रांतिकारी सन्यासी
  3. CrytoPruro on स्वामी विवेकानंद – एक क्रांतिकारी सन्यासी
  4. CrytoPruro on स्वामी विवेकानंद – एक क्रांतिकारी सन्यासी
  5. CrytoPruro on स्वामी विवेकानंद – एक क्रांतिकारी सन्यासी

Archives

  • March 2023
  • February 2023
  • January 2023
  • November 2022
  • July 2022

Categories

  • Uncategorized
©2023 vartabook | Design: Newspaperly WordPress Theme