https://www.facebook.com/share/p/eEGh1seths1jdvm7/?mibextid=oFDknkमुंशी प्रेमचंद जी (धनपतराय श्रीवास्तव) का पत्नी के साथ फोटो जिसमें उन्होंने फटे जूते पहने हुए हैं। इस फोटो को देखकर महान लेखक हरिशंकर परसाई जी ने एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था “सोचता हूँ, यदि फोटो खिंचवाने की अगर यह वेश-भूषा है, तो पहनने की कैसी होगी? नहीं, इस आदमी की अलग-अलग वेश-भूषा नहीं होंगी। इसमें वेश-भूषा बदलने का गुण नहीं है। यह जैसा है, वैसा ही फोटो में खींच जाता है।
यह व्यक्ति पोशाक बदल भी नहीं सकता क्योंकि इसने भारत की जनता के मर्म को छुआ है। इस की पोशाक के पीछे #गोदान जैसे महाकाव्य की आदरांजलि भी तो है। महान् लेखक उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द जी को सादर प्रणाम व शत शत नमन्
मुंशी प्रेमचंद (1880-1936) हिंदी और उर्दू के प्रसिद्ध लेखक थे। उनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। वे अपने यथार्थवादी और समाज-सुधारक लेखन के लिए जाने जाते हैं। उनके प्रमुख उपन्यासों में “गोदान”, “गबन”, “कर्मभूमि”, “निर्मला” और “सेवासदन” शामिल हैं।
प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों में भारतीय समाज की समस्याओं और गरीब, मजदूर, किसान और निम्न वर्ग के जीवन का यथार्थ चित्रण मिलता है। उनकी रचनाएँ सामाजिक बुराइयों, गरीबी, जाति व्यवस्था, और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाती हैं। वे एक प्रगतिशील लेखक थे जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से सामाजिक जागरूकता फैलाने का प्रयास किया।
प्रेमचंद ने पत्रकारिता और संपादन का कार्य भी किया और वे “हंस” और “माधुरी” जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं के संपादक भी रहे। उनका साहित्य आज भी हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और उनकी रचनाएँ पाठकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हैं
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